आज मन बड़ा उदास है,
सोचती हूँ तुम होते तो कहते बैठो मैं चाय बना देता हु
रसोई से आवाज़ लगाते,
कहते कुछ खाओगी क्या।
मेरे मना करने पर गरम
चाय का मग मुझे पकड़ाते ओर मेरे पास आकर बैठ जाते
हाँ अब बोलो क्या हुआ
मैं रोआंसी सी कहती कुछ
नहीं
तुम मेरा हाथ अपने हाथ
में लेते ओर हौले से कहते बताओ भी
मैं तुम्हारे कंधे पर
सर रखती और फफ़क पड़ती
तुम मेरे चुप होने का
इन्तेज़ार करते
मेरा हाथ सहलाते और
कहते पहले चाय पी लो,
तुम्हें ठंडी चाय पसंद
नहीं है ना
मैं मुस्कुराती और
तुम्हारी नज़रों में झाँकती
तुम्हारी नज़रें मेरी
नज़रों से अठखेलियाँ करती
तुम पूछते आज फिर बॉस
से लड़ाई हुई
मैं हाँ में सिर हिलाती
तुम अपने अन्दाज़ में
ठहाका लगाते ओर कहते
देखा मैं तुम्हें कितने
अच्छे से जानता हूँ
अच्छा चलो बताओ क्या
हुआ
आधा घंटा मेरी बकबक
सुनने के बाद तुम धीरे से सिर हिलाते
मुझे छेड़ते हुए कहते
मैडम मेरे अलावा तुम्हें कोई नहीं झेल सकता
मेरा ग़ुस्सा पल में
काफ़ूर हो जाता
पर आज, आज ऐसा नहीं है
तुम नहीं हो, तुम्हारी
वो बातें नहीं है
चाय गरम है पर शायद मन
नहीं है
ये क्या की ज़िंदगी
गुज़रती जा रही है
ये क्या की सब कुछ वही
है, पर कुछ पीछे भूल आए
ये क्या की ताउम्र
कोशिश की, पर आज फिर तुम याद आए
No comments:
Post a Comment